Sunday, June 20, 2010

चल रही ज्ञान पर एकाधिकार की साजिशः सुलभ


कथादेश के संपादक हरिनारायण को बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिलभारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान
बिलासपुर। कथाकार एवं संस्कृतिकर्मी ह्रषिकेश सुलभ का कहना है कि भूमंडलीकरण के युग में ज्ञान के क्षेत्र में एकाधिकार की साजिश चल रही है। जो भी सुंदर है, शुभ है और मंगल है उसका हरण हो रहा है। मीडिया का स्वरूप भस्मासुर की तरह है लेकिन वहां भी मंगल और शुभ है, जिसके लिए तमाम पत्रकार संघर्ष कर रहे हैं। वर्तमान में लोग साहित्यिक पत्रकारिता के प्रति उदासीन हैं, इसलिए सच सामने नहीं आ पा रहा है। श्री सुलभ बिलासपुर (छत्तीसगढ़) के लायंस भवन में आयोजित पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिलभारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान समारोह में मुख्यवक्ता की आसंदी से बोल रहे थे। इस आयोजन में कथादेश ( दिल्ली) के संपादक हरिनारायण को मुख्यअतिथि प्रख्यात कवि,कथाकार एवं उपन्यासकार विनोदकुमार शुक्ल ने यह सम्मान प्रदान किया। सम्मान के तहत शाल, श्रीफल, प्रतीक चिन्ह, प्रमाणपत्र और ग्यारह हजार रूपए नकद प्रदान कर साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में किसी यशस्वी संपादक को सम्मानित किया जाता है। इसके पूर्व यह सम्मान वीणा (इंदौर) के संपादक रहे स्व. श्यामसुंदर व्यास और दस्तावेज ( गोरखपुर) के संपादक डा. विश्वनाथप्रसाद तिवारी को दिया जा चुका है।
श्री सुलभ ने पत्रकारिता के सामने मौजूद संकटों की विस्तार से चर्चा की और कहा कि वर्तमान में उद्योगों के साथ अखबारों की संख्या भी बढ़ती जा रही है ऐसे में साहित्य व पत्रकारिता से जुड़े लोगों को साहस दिखाने की जरूरत है ताकि मीडिया पर गलत तत्वों का कब्जा न हो जाए। उन्होंने कहा कि कथादेश के संपादक हरिनारायण लोकमंगल के लिए काम रहे हैं, उनका सम्मान गौरव की बात है।
कार्यक्रम के मुख्यअतिथि विनोदकुमार शुक्ल ने कहा कि इस सम्मान ने प्रारंभ से ही अपनी प्रतिष्ठा बना ली है। एक अच्छा पाठक होने के नाते हरिनारायण को यह सम्मान देते हुए मैं प्रसन्नता का अनुभव कर रहा हूं। कवि-कथाकार जया जादवानी ने कहा कि शब्दों का जादू मनुष्य को जगाता है, दुख है कि पत्रकारिता इस जादू को खो रही है। पत्रकारिता समाज के मन से मनुष्य के मन तक का सफर कर सकती है। साहित्य मनुष्य के मन को सूकून देता है। वरिष्ठ पत्रकार और छत्तीसगढ़ हिंदी ग्रंथ अकादमी के निदेशक रमेश नैयर ने कहा कि मीडिया और पत्रकारिता दो अलग ध्रुव बन गए हैं। समाचारों में मिलावट आज की एक बड़ी चिंता है। इसी तरह खबरों की भ्रूण हत्या भी हो रही है।
बख्शी सृजनपीठ, भिलाई के अध्यक्ष बबनप्रसाद मिश्र का कहना था कि जो समाज पूर्वजों के योगदान को भूल जाता है वह आगे नहीं बढ़ सकता। निरक्षर भारत की अपेक्षा आज के साक्षर होते भारत में समस्याएं बढ़ रही हैं। ऐसे समय में साहित्यकारों को भी अपनी भूमिका पर विचार करना चाहिए। साहित्य अकादमी, दिल्ली के सदस्य और व्यंग्यकार गिरीश पंकज ने कहा कि इस विपरीत समय में साहित्यिक पत्रिका निकालना बहुत कठिन कर्म है। कथादेश एक अलग तरह की पत्रिका है, इसमें साहित्यिक पत्रकारिता के तेवर हैं और देश के महत्वपूर्ण लेखकों के साथ नए लेखकों को भी इसने पहचान दी है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के पत्रकारिता विभाग के अध्यक्ष पुष्पेंद्रपाल सिंह ने कहा कि वर्तमान की चुनौतियों का सामना हम तभी कर सकते हैं जब सहित्य, पत्रकारिता और समाज तीनों मिलकर काम करें। उन्होंने कहा कि यह सम्मान साहित्य और पत्रकारिता के रिश्तों का सेतु बनता हुआ दिख रहा है। मीडिया विमर्श के संपादक डा. श्रीकांत सिंह ने साहित्य के संकट की चर्चा करते हुए कहा कि संकट के दौर का साहित्य ही सच्चा और असरदार साहित्य होता है। पत्रकारिता के अवमूल्यन पर उन्होंने कहा कि पाठक सूचनाओं से वंचित हो रहे हैं। भूमंडलीकरण के नशे में मीडिया पैसे के पीछे भाग रहा है, इससे देश या प्रदेश का विकास नहीं होगा। साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका दूर्वादल ( बस्ती, उप्र) के संपादक डा. परमात्मानाथ द्विवेदी ने समाज में बाजार की भूमिका की चर्चा करते हुए कहा कि इससे सारे रिश्ते खत्म हो रहे हैं। इस स्थिति से हमें सिर्फ साहित्य ही जूझने की शक्ति दे सकता है।
इस मौके पर सम्मानित हुए संपादक हरिनारायण ने अपने संबोधन में कहा कि इसे छद्म विनम्रता ही माना जाएगा यदि मैं कहूं कि इस सम्मान को प्राप्त कर मुझे खुशी नहीं हो रही है। बल्कि इसे मैं एक उपलब्धि की तरह देखता हूं। मेरी जानकारी में साहित्यिक पत्रकारिता के लिए यह तो अकेला सम्मान है। उन्होंने कहा कि मैंने शुऱू से रचना को महत्व दिया। कथादेश में संपादकीय न लिखने के प्रश्न का जवाब देते हुए हरिनारायण ने कहा कि इसे लेकर शुरू से ही मेरे मन में द्वंद रहा है। क्योंकि वर्तमान परिवेश में अधिकतर संपादकीयों में अपने गुणा-भाग, आत्मविज्ञापन, झूठे दावे, सतही वैचारिक मुद्रा,उनके अंतविर्रोध या रचना की जगह अपने हितकारी लेखकों का अतिरिक्त प्रोजेक्शन ही नजर आता है। जिससे साहित्य का वातावरण दूषित हुआ है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के अध्यक्ष श्यामलाल चतुर्वेदी ने कहा कि अखबारों ने जमीनी समस्याओं को निरंतर उठाया है किंतु आज उनपर सवाल उठ रहे हैं तो उन्हें अपनी छवि के प्रति सचेत हो जाना चाहिए। क्योंकि शब्दों की सत्ता से भरोसा उठ गया तो कुछ भी नहीं बचेगा।
कार्यक्रम के प्रारंभ में स्वागत भाषण बेनीप्रसाद गुप्ता ने किया। संचालन छत्तीसगढ़ महाविद्यालय, रायपुर हिंदी की प्राध्यापक डा. सुभद्रा राठौर ने तथा आभार प्रदर्शन बिलासपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष शशिकांत कोन्हेर ने किया। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के अनेक महत्वपूर्ण रचनाकार, साहित्यकार, पत्रकार एवं बुद्धिजीवी उपस्थित थे। जिनमें प्रमुख रूप से रविवार डाट काम के संपादक आलोकप्रकाश पुतुल, पत्रकार नथमल शर्मा, कथाकार सतीश जायसवाल, रामकुमार तिवारी, संजय द्विवेदी, भूमिका द्विवेदी, कपूर वासनिक,डा. विनयकुमार पाठक, डा. पालेश्वर शर्मा, सोमनाथ यादव, अचिंत्य माहेश्वरी, प्रवीण शुक्ला, हर्ष पाण्डेय, यशवंत गोहिल, हरीश केडिया, बजरंग केडिया, पूर्व विधायक चंद्रप्रकाश वाजपेयी, बलराम सिंह ठाकुर, पं. रामनारायण शुक्ल, व्योमकेश त्रिवेदी आदि मौजूद रहे। इस अवसर मुख्यअतिथि विनोदकुमार शुक्ल ने मीडिया विमर्श के प्रभाष जोशी स्मृति अंक का विमोचन किया। इसके अलावा उप्र के बस्ती जिले से प्रकाशित साहित्यिक त्रैमासिक पत्रिका दूर्वादल के नवीन अंक का विमोचन भी हुआ।

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