Thursday, October 8, 2015

दीनदयालजी पर एक प्रामाणिक किताब

-सईद अंसारी
(समीक्षक आजतक न्यूज चैनल में एडीटर-स्पेशल प्रोजेक्ट्स तथा प्रख्यात एंकर हैं)


पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी का शताब्दी वर्ष 25 सितंबर 2015 से शुरू हुआ है। इस मौके पर लेखक संजय द्विवेदी ने दीनदयाल पर बेहद प्रामाणिक, वैचारिक सामग्री इस किताब के रूप में पेश की है। निश्चित रूप से इस प्रयास के लिए संजय बधाई के पात्र हैं।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय के पूरे व्यक्तित्व का आकलन पांच भागों में पुस्तक को बांटकर किया गया है। लेखक संजय द्विवेदी की लेखनी ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जीवन के हर पहलू को बड़ी सहजता और सरलता से पाठकों के मानस पटल पर अंकित किया है। पुस्तक के पहले भाग में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में पंडित दीनदयाल के विचारों को बहुत ही खूबी से स्पष्ट किया है संजय ने। दीनदयालजी के अनुसार परस्पर जोड़ने वाला विचार हमारी संस्कृति है और यही सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का मर्म है. किस तरह से दीनदयाल अखंड भारत के समर्थक रहे, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को उन्होंने कैसे परिभाषित किया, 'वसुधैव कुटुम्बकम' की पंडितजी ने क्या अवधारणा दी, समाज के सर्वांगीण विकास और उत्थान के लिए उनके कार्यों और प्रयासों से पाठकों को अवगत कराने की सराहनीय कोशिश की गई है।
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के संबंध में डॉ. महेशचंद शर्मा का कहना है कि 'गुरुजी' श्री गोलवलकर के अनुसार दो प्रकार के राष्ट्रवाद हैं. पहला भू-सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और दूसरा राजनीतिक क्षेत्रीय राष्ट्रवाद ( politico territorial nationalism ). भू सांस्कृतिक राष्ट्रवाद मानवीय है जबकि राजनीतिक क्षेत्रीय राष्ट्रवाद युद्दकामी और साम्राज्यवाद का सर्जक है। संस्कृति तत्व ही राष्ट्रीयत्व का नियामक होता है। दीनदयाल के अनुसार 'अखंडता की भगीरथी की पुण्यधारा में सभी प्रवाहों का संगम आवश्यक है। यमुना भी मिलेगी और अपनी सारी कालिमा खोकर गंगा की धवल धारा में एकरूप हो जाएगी.।
दीनदयाल के एकात्म अर्थ चिंतन पर डॉ. बजरंगलाल गुप्ता ने विचार रखे हैं। दीनदयालजी ने समाज के विकास और प्रगति की आकांक्षा रखी थी इसीलिए न केवल आर्थिक परिदृश्य बल्कि सामाजिक, आर्थिक समस्याएं और उनके समाधान के लिए भी हमेशा अपने विचार व्यक्त किए और यही था अर्थ चिंतन। लेकिन वह एक ऐसी व्यवस्था के पक्षधर थे जिसमें धर्म, अर्थ, सदाचार, और समृद्धि साथ-साथ चल सकें. ऐसी व्यवस्था से अर्थ के अभाव और अर्थ के प्रभाव दोनों से बचाव संभव है। पंडित दीनदयाल उपाध्यायजी के विराट व्यक्तित्व के पीछे उनकी तपस्या, त्याग और संघर्ष का विशेष आधार था। पंडितजी को जनसंघ का अध्यक्ष बनाए जाने पर उन्होंने कहा, 'आपने मुझे किस झमेले में डाल दिया.' इसपर गुरू गोलवलकर का यही जवाब था कि जो संगठन के काम में अविचल निष्ठा और श्रद्धा रखे वही कीचड़ में रहकर भी कीचड़ से अछूता रहते हुए भी सुचारू रूप से वहां की सफाई कर सकेगा.।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय का अनुकरण करना सबके लिए आसान नहीं है। उपाध्यायजी की भतीजी मधु शर्मा पंडितजी की लगन का एक उदाहरण देते हुए बताती हैं कि जनसंघ का संविधान लिखने के लिए पंडितजी लगातार दो दिन तक जागते रहे थे और इसी अवधि में उन्होंने बिना खाए पीये सिर्फ काम किया था। दीनदयाल ने हर व्यक्ति के सामाजिक और सांस्कृतिक व्यवहार पर महत्व दिया है।  बीजेपी ने भारतीय जनसंघ के बड़े नेता पंडित दीनदयाल को एकात्म मानवतावाद के साथ पूर्ण रूप में अपनाया है. पंडितजी का चिंतन मौलिक था और पूरी मानवता के लिए था। पंडित हरिदत्त शर्मा के अनुसार 'दीनदयाल के व्यक्तित्व को शब्दों में पिरो पाना बड़ा कठिन है।
संजय द्विवेदी ने दीनदयाल के व्यक्तित्व के प्रत्येक पहलू को उजागर करते हुए इस पुस्तक का संपादन किया है। दीनदयाल के बारे में जानने उन्हें समझने, उनके आदर्शों की जानकारी हासिल करने वाले पाठक और मीडिया से जुड़े व्यक्तित्वों के लिए निश्चित रूप से यह पुस्तक उनके अध्ययन, विश्लेषण और शोध के लिए विशेष सहायता करेगी। विद्वानों के उपाध्यायजी के बारे में जाहिर किए गए विचार, उनके लेखों और भाषणों को किताब में शामिल कर संजय द्विवेदी ने पंडितजी के बारे में सबकुछ समेट दिया है। संजय की संपादित पुस्तक के जरिए पंडितजी का संचारक व्यक्तित्व तो पाठकों के सामने आएगा ही साथ लेखकीय और पत्रकारिता के रूप में उनके व्याख्यान दिशा-निर्देश का काम करेंगे।
पुस्तक: भारतीयता का संचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय 
संपादन:
 संजय द्विवेदीप्रकाशक: विजडम पब्लिकेशन, सी-14, डी.एस.आई.डी.सी. वर्क सेंटर, झिलमिल कालोनी,  दिल्ली-110095
मूल्य:
 500 रुपये

Sayeed Ansari
Editor, Special Projects- Editorial – AT ,
TV Today Network Ltd.
India Today Mediaplex
FC 8, Sec. 16 A, Film City
Noida 201301


Thursday, August 6, 2015

दीनदयाल जी की याद दिलाती एक किताब

- लोकेन्द्र सिंह 
भारतीय जनता पार्टी के प्रति समाज में जो कुछ भी आदर का भाव है और अन्य राजनीतिक दलों से भाजपा जिस तरह अलग दिखती है, उसके पीछे महामानव पंडित दीनदयाल उपाध्याय की तपस्या है। दीनदयालजी के व्यक्तित्व, चिंतन, त्याग और तप का ही प्रतिफल है कि आज भारतीय जनता पार्टी देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर राजनीति के शीर्ष पर स्थापित हो सकी है। राज्यों की सरकारों से होते हुए केन्द्र की सत्ता में भी मजबूती के साथ भाजपा पहुंच गई है। राजनीतिक पंडित हमेशा संभावना व्यक्त करते हैं कि यदि दीनदयालजी की हत्या नहीं की गई होती तो आज भारतीय राजनीति का चरित्र कुछ और होता। दीनदयालजी श्रेष्ठ लेखक, पत्रकार, विचारक, प्रभावी वक्ता और प्रखर राष्ट्र भक्त थे। सादा जीवन और उच्च विचार के वे सच्चे प्रतीक थे। उन्होंने शुचिता की राजनीति के कई प्रतिमान स्थापित किए थे। उनकी प्रतिभा देखकर ही श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि यदि मेरे पास एक और दीनदयाल उपाध्याय होता तो मैं भारतीय राजनीति का चरित्र ही बदल देता।
        ऐसे राष्ट्रनायक पंडित दीनदयाल उपाध्याय की इस वर्ष जन्मशती प्रारम्भ हो रही है। उन्होंने मानव समाज की पश्चिम की सभी परिकल्पनाओं को नकारते हुए 'एकात्म मानववाद' जैसा अद्भुत और पूर्ण दर्शन दिया। यह वर्ष 'एकात्म मानवदर्शन' का स्वर्ण जयंती वर्ष भी है। पंडितजी की 100वीं जयंती 25 सितम्बर, 2015 से अगले वर्ष तक उन्हें याद किया जाने वाला है। उनकी अपनी पार्टी भाजपा तो सालभर कार्यक्रम करेगी ही अन्य सामाजिक संगठन और लेखक-विचारक भी उनके विचारदर्शन पर मनन-चिंतन-व्याख्यान करने वाले हैं।
        ऐसे महत्वपूर्ण समय में दीनदयाल उपाध्याय के समग्र जीवन को ध्यान में रखकर राजनीतिक विचारक संजय द्विवेदी द्वारा संपादित पुस्तक 'भारतीयता का संचारक, पं. दीनदयाल उपाध्याय' का आना सुखद है। पुस्तक की चर्चा भी प्रासंगिक है। दरअसल, लम्बे समय तक सत्ता रूपी गुलाब जामुन के इर्द-गिर्द पसरी चासनी चाटकर पलते-बढ़ते वामपंथियों ने प्रोपेगंडा फैलाकर भारतीय जनता पार्टी और उसकी विचारधारा को 'राजनीतिक अछूत' की श्रेणी में रखा। अकादमिक संस्थाओं और संचार के संगठनों में बैठकर उन्होंने इस तरह के षड्यंत्र को अंजाम दिया। इस षड्यंत्र को ध्वस्त करने का काम दीनदयालजी ने किया। हालांकि यह भी सच है कि संचार माध्यमों पर वामपंथियों के एकाधिकार के कारण ही दीनदयालजी और उनके विचार को जितना विस्तार मिलना चाहिए था, नहीं मिल सका। अब समय आया है कि दीनदयालजी का असल मूल्यांकन हो। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के आग्रह पर दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक जीवन से राजनीति में भेजे गए थे। उन्होंने भारतीय राजनीति को एक दर्शन दिया, एक नया विचार दिया और एक नया विकल्प दिया। राष्ट्रवादी विचारधारा के मजबूत स्तम्भ दीनदयालजी ने मानव जीवन के संबंध में दुनिया में प्रचलित परिकल्पनाओं की अपेक्षा कहीं अधिक संपूर्ण दर्शन दिया। वामपंथियों के ढकोसलावादी सिद्धांतों की अपेक्षा दीनदयालजी का एकात्म मानवदर्शन व्यावहारिक था। यही कारण है कि विरोधी विचारधाराओं द्वारा तमाम अवरोध खड़े करने के बाद भी एकात्म मानवदर्शन लोक स्वीकृति पा गया। इसमें सम्पूर्ण जीवन की एक रचनात्मक दृष्टि है। इसमें भारत का अपना जीवन दर्शन है, जो व्यक्ति, समाज और राष्ट्र को टुकड़ों में नहीं, समग्रता में देखता है। दीनदयालजी अपने दर्शन में बताते हैं कि मन, बुद्धि, आत्मा और शरीर इन चारों का मनुष्य में रहना आवश्यक है। इन चारों को अलग-अलग करके विचार नहीं किया जा सकता।
       बहरहाल, जब दीनदयाल उपाध्याय के विलक्षण व्यक्तित्व एवं उनके विचारदर्शन की व्यापक चर्चा का अवसर आया है तो राजनीति, मीडिया और जनसंचार के अध्येताओं को उनके संबंध में अधिक से अधिक संदर्भ सामग्री की आवश्यकता होगी। संजय द्विवेदी द्वारा संपादित पुस्तक 'भारतीयता का संचारक' राजनीतिज्ञों, संचारवृत्तिज्ञों और लेखकों की बौद्धिक भूख को कुछ हद तक शांत करने में सफल होगी। पुस्तक को चार खण्डों में बांटकर दीनदयाल जी के समग्र व्यक्तित्व का आंकलन किया गया है। पहले खण्ड में उनके विचार दर्शन पर चर्चा है। दूसरे खण्ड में उनके संचारक, लेखकीय और पत्रकारीय व्यक्तित्व पर विमर्श है। तीसरे खण्ड 'दस्तावेज' में डॉ. सम्पूर्णानंद, श्रीगुरुजी और नानाजी देशमुख द्वारा उन पर लिखी-बोली गई सामग्री संकलित की गई है। इसी हिस्से में दीनदयाल जी के दो महत्वपूर्ण लेख भी सम्मिलित किए गए हैं, जिनमें से एक भाषा पर है तो दूसरा पत्रकारिता पर है। चौथे अध्याय में एकात्म मानववाद को प्रवर्तित करते हुए दीनदयाल जी के व्याख्यान संकलित किए गए हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की ख्याति विश्व को एकात्म मानवदर्शन का चिंतन देने और भारतीय जनता पार्टी के विचार-पुरुष के रूप में हैं। भारतीय राजनीति में उनके अवदान से फिर भी दुनिया भली-भांति परिचित है। लेकिन, पत्रकारिता एवं जनसंचार के क्षेत्र में उनके योगदान को बहुत कम विद्वान जानते हैं। श्री द्विवेदी की पुस्तक के दूसरे अध्याय से गुजरते हुए दीनदयाल जी उपाध्याय की छवि 'भारतीयता के संचारक' के नाते सदैव के लिए अंकित हो जाती है। इस हिस्से में बताया गया है कि कैसे और किन परिस्थितियों में पंडितजी ने भारतीय विचार के प्रचार-प्रसार के लिए पत्रकारिता को माध्यम बनाया। संचार के माध्यमों पर वामपंथियों के कब्जे के बीच उन्होंने राष्ट्रवादी विचार को लोगों तक पहुंचाने के लिए स्वदेश, राष्ट्रधर्म और पाञ्चजन्य की शुरूआत की। पंडितजी ने कंपोजीटर से लेकर संवाददाता तक की भूमिका निभाई थी। इस अध्याय में देखने को मिलता है कि कैसे उन्होंने पत्रकारिता के सिद्धांतों की स्थापना की थी। पुस्तक दूसरे क्षेत्रों में भी उनके चिंतन के दर्शन कराती है। निश्चित ही दीनदयाल जी के आर्थिक चिंतन के बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे। कृषि, उद्योग, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में भी उनके गहरे चिंतन की जानकारी हमें इस पुस्तक से मिलेगी। दीनदयाल जी संभवत: पहले राजनेता हैं जिनके चिंतन का केन्द्र अंतिम आदमी है। आदमी की बुनियादी जरूरतों के बारे में उन्होंने जिस गहराई से विचार किया, वहां तक भी पहले कोई नहीं पहुंचा था। पंडितजी अधिक व्यावहारिक धरातल पर उतरते हुए कहते हैं कि प्रत्येक अर्थव्यवस्था में न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति की गारंटी एवं व्यवस्था अवश्य रहनी चाहिए। न्यूनतम आवश्यकताओं में वे रोटी, कपड़ा और मकान तक ही सीमित नहीं रहते बल्कि उससे आगे जाकर शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा को भी सम्मिलित करते हैं। बहरहाल, अंत्योदय का विचार देने वाले राष्ट्रऋषि दीनदयाल उपाध्याय पर उनके जन्मशती वर्ष में एक सम्पूर्ण पुस्तक का आना वास्तव में शोधार्थियों, राजनीतिज्ञों, पत्रकारों और लेखकों के लिए महत्वपूर्ण है। दीनदयाल जी के समग्र व्यक्तित्व के दर्शन कराने में पुस्तक सफल है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस पुस्तक के बहाने पंडित दीनदयाल उपाध्याय का बिना किसी अवरोध-विरोध के ईमानदारी से विश्लेषण किया जा सकेगा।
(समीक्षक युवा साहित्यकार एवं स्तंभकार हैं)
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पुस्तक : भारतीयता का संचारक : पं. दीनदयाल उपाध्याय (संपादकः संजय द्विवेदी)
मूल्य : 500 रुपये (सजिल्द संस्करण), पृष्ठ : 324
प्रकाशक : विज्डम पब्लिकेशन, सी-14, डी.एस.आई.डी.सी. वर्क सेंटर,
झिलमिल कॉलोनी, शाहदरा, दिल्ली-110095

Wednesday, April 15, 2015

भारत के उजले पक्ष को दिखाएं साहित्यकार : श्री महेश श्रीवास्तव

लोकेन्द्र सिंह के काव्य संग्रह 'मैं भारत हूं' का विमोचन
भोपाल, 04 अप्रैल। अपने देश को हमें हीन भावना से प्रस्तुत नहीं करना चाहिए। अपने लेखन में भारतीय वाग्ंमय और भारतीय उदाहरणों को प्रस्तुत करना चाहिए। ताकि प्रत्येक भारतवासी को अपने देश पर गौरव हो और दुनिया भी जाने की भारत एक महान देश है। यह पुरानी कहावत है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। लेकिन, धन और बाजारवाद का प्रभाव बढ़ रहा है, जिससे ये दर्पण कुछ दरक गया है। इस कारण बिम्ब कुछ धुंधले बन रहे हैं। साहित्यकारों को भारत के उजले पक्ष को दिखाना चाहिए। ये विचार प्रख्यात कवि और वरिष्ठ पत्रकार श्री महेश श्रीवास्तव ने व्यक्त किए। वे युवा साहित्यकार लोकेन्द्र सिंह के काव्य संग्रह 'मैं भारत हूं' के विमोचन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि उपस्थित थे। समारोह का आयोजन 'एक भारतीय आत्मा' पं. माखनलाल चतुर्वेदी की जयंती प्रसंग पर मीडिया विमर्श पत्रिका के तत्वावधान में किया गया। समारोह की अध्यक्षता माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने की। वरिष्ठ पत्रकार श्री अक्षत शर्मा भी बतौर विशिष्ट अतिथि मौजूद रहे।
श्री श्रीवास्तव ने कहा कि जब मैं कहता हूं कि मैं भारत हूं तो हमारे भीतर गंगा की पवित्रता, हिमालय की गर्वोन्नति और हिन्द महासागर की गहराई एवं विशालता दिखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अनुभव की अभिव्यक्ति है साहित्य। पत्रकारिता भी साहित्य है लेकिन इसमें अनुभव का इस्तेमाल कम होता है। 'मैं भारत हूं' काव्य संग्रह की बेटि को समर्पित एक कविता का जिक्र करते हुए कहा कि आज समाज में बेटियों की अस्वीकारता है लेकिन कवि किस तरह से अपनी बेटियों को सम्मान देता है, यह सबको जानना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि जब तक हम अपने देश की हवा, मिट्टी, पानी को आत्मसात नहीं करेंगे तब तक देश का कल्याण नहीं होगा। विमोचित काव्य संग्रह में कवि ने इसी हवा, मिट्टी और पानी को आत्मसात कर लेखन किया है। शोधपत्रों का उदाहरण देकर उन्होंने बताया कि उज्जैन में स्थित महाकाल के शिवलिंग को केन्द्र मानकर खगोल की गणना की जाती थी। ज्यामिति, गणित, चिकित्सा इन सबका विकास कहाँ हुआ? अपनी लेखनी से हमें यह बताना चाहिए।
भाव को मजबूत बनाती है बौद्धिकता : कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि लाखों वर्षों की संकल्पनाओं का समावेश 'भारत' शब्द में है। उसे व्यक्त करना बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। 'एक भारतीय आत्मा' के नाम से ख्यात महान कवि पं. माखनलाल चतुर्वेदी की आज जयंती है। उनको याद करना भारतीय परम्पराओं को याद करना है। हमें यह जानना चाहिए कि उन्होंने इतना सकारात्मक लेखन करने के लिए क्या-क्या अध्ययन किया। विद्वान कहते हैं कि एक हजार शब्द पढऩे के बाद एक शब्द लिखना चाहिए। हमारे शास्त्र मनन की बात करते हैं। हमें अध्ययन के बाद मनन करना चाहिए, तब जो शब्द निकलेगा वह ब्रह्म होगा। वरना शब्द तो भ्रम भी होता है। इसलिए हमें अध्ययन में भी सावधानी बरतनी चाहिए। गलत दिशा में अध्ययन से श्रेष्ठ अभिव्यक्ति नहीं हो सकती। भाव की मजबूती के लिए बौद्धिकता की जरूरत होती है। उन्होंने कहा कि आसान काम नहीं था, जब माखनलाल चतुर्वेदी ने पत्रकारिता और लेखन कार्य किया। उस वक्त अंग्रेजी हुकूमत का दौर था। लेकिन, समाज के लिए समर्पित जीवन से उन्होंने वह कर दिखाया था। 
           
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि श्री अक्षत शर्मा ने कहा कि 'मैं भारत हूं' काव्य संग्रह में शामिल सब कविताएं अपनी माटी के लिए समर्पित हैं। उन्होंने कहा कि संग्रह में शामिल कविताएं उज्ज्वल और गौरवशाली भारत की तस्वीर दिखाती हैं। अपने देश पर गर्व करने की प्रेरणा देती हैं। इससे पूर्व पुस्तक का परिचय लेखक एवं कवि लोकेन्द्र सिंह ने दिया। उन्होंने कहा कि उनके लिए देश कोई भूगोल नहीं है बल्कि एक जीता-जागता देवता है। अपने इस देवता की स्तुति में ही उन्होंने कविताएं और गीत रचे हैं। उन्होंने कहा कि देश, समाज और प्रकृति के साथ-साथ संग्रह में शामिल कई कविताएं मानवीय रिश्तों के इर्द-गिर्द भी रची गई हैं। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सौरभ मालवीय ने किया। इस मौके पर कुलाधिसचिव श्री लाजपत आहूजा, कुलसचिव श्री चंदर सोनाने, जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी, वरिष्ठ पत्रकार गिरीश उपाध्याय, सुनील शुक्ला, प्रवीण दुबे, शैलेन्द्र तिवारी, मध्यप्रदेश सूचना आयुक्त आत्मदीप, सामाजिक कार्यकर्त्ता सतीश पिम्पलीकर, हेमन्त मुक्तिबोध, डॉ. मयंक चतुर्वेदी, विभोर शर्मा, हरेकृष्ण दुबोलिया, सचिन जैन और शहर के गणमान्य नागरिकों सहित विद्यार्थी भी मौजूद रहे।

कार्यक्रम में मौजूद अतिथि 

Tuesday, March 24, 2015

भाषाई सद्भावना के लिए काम रही मीडिया विमर्शः बृजमोहन

गुजराती पत्रकारिता विशेषांक का विमोचन


रायपुर। भारतीय नववर्ष के उपलक्ष्य में छत्तीसगढ़ प्रदेश के कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने अपने निवास पर जनसंचार के सरोकारों पर केन्द्रित पत्रिका मीडिया विमर्श के गुजराती पत्रकारिता विशेषांक का विमोचन किया। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर, पत्रिका के प्रबंध सम्पादक प्रभात मिश्र, संपादक मंडल की सदस्य डॉ सुभद्रा राठौर,वरिष्ठ पत्रकार अनिल द्विवेदी सहित युवा पत्रकार हेमंत पाणिग्रही, बिकास कुमार शर्मा, मनीष शर्मा एवं रोहित साहू उपस्थित थे।
   इस अवसर पर बृजमोहन अग्रवाल उपस्थित जनों को नववर्ष की बधाई देते हुए कहा कि मीडिया विमर्श पत्रिका लगातार मीडिया के विभिन्न विषयों पर सामग्री उपलब्ध करा रही है जो मीडिया से जुड़े लोगों एवं मीडिया छात्रों के लिए बहुत उपयोगी है। भारत में हिंदी भाषा के साथ साथ समस्त क्षेत्रीय भाषाओँ एवं स्थानीय बोलियों का अपना अलग महत्त्व है,हमें सभी भाषाओं समृद्ध करने की दिशा में कार्य करना चाहिये।मीडिया विमर्श का प्रयास इस दिशा में सराहनीय है। उन्होंने कहा कि उर्दू पत्रकारिता के बाद पत्रिका ने गुजराती पत्रकारिता का विशेषांक प्रकाशित है। इससे देश में भाषाई सद् भाव पैदा होगा और भारतीय भाषाओं में अंतरसंवाद भी होगा। उन्होंने कहा कि सभी भारतीय भाषाएं मातृभाषाएं भी हैं इसलिए इनके लिए आपसी संवाद के क्षेत्र तलाशे जाने चाहिए।
    पत्रिका के प्रबंध सम्पादक प्रभात मिश्र ने इस विशेषांक के संबंध में जानकारी देते हुए बताया कि हिंदी पत्राकारिता के साथ-साथ अन्य क्षेत्रीय भाषायी पत्रकारिता पर भी मीडिया विमर्श सामग्री उपलब्ध करा रही है। पत्रिका अपने प्रकाशन का एक दशक जल्द ही पूरा करने जा रही है। पत्रकार श्री रमेश नैयर ने कहा कि पत्रिका सही मायने में मीडियाकर्मियों के आत्मचिंतन और आत्ममंथन का मंच बन गयी है, इसका हर अंक संग्रहणीय और पठनीय है,साथ ही विमर्श के नए द्वार खोलता है।
क्या है गुजराती पत्रकारिता अंक मेः

    मीडिया विमर्श के गुजराती पत्रकारिता पर आए विशेषांक में समूची गुजराती पत्रकारिता पर पठनीय और संग्रहणीय सामग्री है। गुजराती पत्रकारिता के दिग्गज पत्रकारों के अलावा अन्य मीडिया विशेषज्ञों ने गुजराती पत्रकारिता पर अपनी कलम चलाई है। गुजराती पत्र-पत्रिकाओं, अखबारों, टेलीविजन चैनल्स, वेब मीडिया के साथ ही गुजराती फिल्मों के संबंध में भी मीडिया विमर्श का यह अंक महत्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध कराता है। इसमें शशिकांत वसानी, पिंकी दलाल, भगवती कुमार शर्मा, मनीष मेहता, किरीट गणात्रा, कौशिक मेहता, काना बाटवा, डा.महेश परिमल और आशीष जोशी के साक्षात्कार प्रकाशित किए गए हैं। खण्ड नया दौर, नई चुनौतियां के अंतर्गत शैलेष रावल, पिंकी दलाल, कुलवंत हैप्पी, जयेश चितलिया, अर्चना गुसाणी, तुषार त्रिवेदी, विक्रम वकील, जयेश ठकरार और डॉ. यासीन दलाल के लेख प्रकाशित हैं। स्वर्णिम अध्याय खण्ड में कमल शर्मा, कौशिक मेहता, डॉ. किषोर दवे और बादल पंड्या के लेख शामिल हैं। अजय नायक, हिमांशु किकाणी और कल्याणी देशमुख ने गुजरात की वेब पत्रकारिता को रेखांकित किया है।

Tuesday, February 10, 2015

संवेदनाएं हो रही हैं खत्म : तेजिन्दर



पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान समारोह में वरिष्ठ पत्रकार विनय उपाध्याय का सम्मान
भोपाल, 07 फरवरी। हम बहुत ही कठिन समय में जी रहे हैं, यह हमें याद रखना चाहिए। वर्तमान समय में लोगों की संवेदनाएं खत्म हो रही हैं, यह गंभीर बात है। मीडिया की भी यही स्थिति है। मीडिया के लिए भूख और गरीबी कोई खबर नहीं है। उसकी सारी खबरें राजनीति, क्रिकेट, बॉलीवुड और फैशन के इर्द-गिर्द हैं। ये विचार प्रख्यात उपन्यासकार तेजिन्दर ने व्यक्त किए। मीडिया विमर्श के तत्वावधान में आयोजित पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान समारोह में वे बतौर मुख्य अतिथि मौजूद थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने की। उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद जगदम्बिका पाल भी विशिष्ट अतिथि के नाते उपस्थित थे। सम्मान समारोह में आठवां पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान-2015 'कला समय' और 'रंग संवाद' के संपादक विनय उपाध्याय को दिया गया।
            साहित्यकार श्री तेजिन्दर ने कहा कि बाजारवाद के प्रभाव से साहित्य को किनारे किया जा रहा है। हमारी भाषा, शैली और शब्दों पर कार्पोरेट ने कब्जा कर लिया है। कार्पोरेट बड़ी चालाकी से साहित्य का इस्तेमाल अपने उत्पाद को बेचने में कर रहा है, लेकिन उसे साहित्यकार की संवेदनाओं की परवाह नहीं है। आज शब्द की सत्ता पर सबसे अधिक खतरा है। साहित्यिक पत्रिकाओं के मुकाबले फैशन की पत्रिकाएं अधिक हैं। आर्थिक पत्रिकाओं की भी संख्या ज्यादा है। उन्होंने बताया कि प्रकाशकों और पूंजीपतियों ने लेखकों की संवेदनाओं का दुरुपयोग करने के नए तरीके इजाद कर लिए हैं। उनके जाल में मध्यमवर्गीय लेखक धंसता जा रहा है। ऐसे दौर में मीडिया विमर्श पत्रिका ने साहित्यिक पत्रकारिता का सम्मान कर एक सकारात्मक माहौल बनाने की कोशिश की है।
संसद नहीं कर सकती, वे काम मीडिया ने किए : सांसद जगदम्बिका पाल
उत्तरप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के सांसद जगदम्बिका पाल ने कहा कि पत्रकारिता के उद्देश्य से भटकने की बहस के बीच आज भी पत्रकारिता की भूमिका और प्रभाव को उपेक्षित नहीं किया जा सकता है। जनधारणा है कि आज भी जो काम संसद नहीं कर सकी है, वे सब काम पत्रकारिता ने किए हैं और कर रही है। संसद की कार्यवाही के एजेंडा तक पत्रकारों के समाचार और लेख से तय हो जाते हैं। भोपाल को कला-संस्कृति का केन्द्र बताते हुए उन्होंने कहा कि देश की राजनीतिक राजधानी दिल्ली है, आर्थिक राजधानी मुम्बई है तो सांस्कृतिक राजधानी भोपाल है। उन्होंने कहा कि आज के समय में मीडिया की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण हो गई है। आप किसी भी प्रकार के ट्रायल से बच सकते हैं लेकिन मीडिया ट्रायल से नहीं। भारतीय पत्रकारिता ने कई घोटाले उजागर किए हैं। समाज में सकारात्मक वातावरण का निर्माण भी मीडिया कर रहा है। 
विमर्श से समाज का बौद्धिक विकास : प्रो. बृजकिशोर कुठियाला
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने कहा कि समाज का बौद्धिक विकास विमर्श से होता है। लेकिन, विमर्श की दिशा क्या हो, यह साहित्यकारों और प्रबुद्धवर्ग को गंभीर चिंतन कर तय करनी चाहिए। शब्द ब्रह्म भी है और भ्रम भी। विमर्श के माध्यम से हमें समाज में ऐसा जागरण लाना चाहिए कि लोग शब्द के भ्रम से बच सकें। शब्द के माध्यम से जोडऩे का प्रयास होना चाहिए, तोडऩे का नहीं। बौद्धिक विमर्शों के माध्यम से हमें यह प्रयास करना चाहिए कि शब्द भ्रम का मायाजाल खड़ा न हो पाए। उन्होंने कहा कि शब्द का व्यापार होने लगे तो कहीं न कहीं समाज का नुकसान है। प्रो. कुठियाला ने कहा कि बौद्धिक पत्रिकाओं की आज भी जरूरत है। शोध ने यह सिद्ध किया है कि 70 प्रतिशत परिवारों में साहित्यिक पत्रिकाओं को पढ़ा जा रहा है।
सार्थक कोशिशों का सम्मान है : वरिष्ठ पत्रकार विनय उपाध्याय
समारोह में वरिष्ठ साहित्यिक पत्रकार विनय उपाध्याय को शॉल-श्रीफल और सम्मान निधि से सम्मानित किया गया। पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित होने के अवसर पर श्री उपाध्याय ने कहा कि यह मेरा नहीं बल्कि साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में सार्थक कोशिशों का सम्मान है। उन्होंने कहा कि साहित्यिक पत्रकारिता के पुरोधा माखनलाल चतुर्वेदी की कर्मभूमि खण्डवा में पढ़ाई के दौरान साहित्यिक पत्रकारिता के बीज मेरे हृदय में पड़े। भोपाल आकर मैंने असल मायने में साहित्यिक पत्रकारिता को जाना। शुरुआत में मुझे हतोत्साहित करने का प्रयास भी किया गया लेकिन बाद में सबने मेरे प्रयासों की सराहना की। श्री उपाध्याय ने बताया कि पहले मुख्यधारा के समाचार-पत्रों में साहित्यिक पत्रकारिता के लिए पर्याप्त स्थान दिया जाता था, जो वर्तमान में गायब हो गया है। यह समाज के लिए शुभ संकेत नहीं है।
सरकार करे साहित्यिक पत्रकारिता का संरक्षण : वरिष्ठ पत्रकार कमल भुवनेश
कमोडिटीज कंट्रोल डॉट कॉम के सम्पादक कमल भुवनेश ने कहा कि पत्रकारिता में खबरों को उत्पाद की तरह बेचने की जो प्रवृत्ति आई है, उसने कहीं न कहीं पत्रकारिता और समाज दोनों का नुकसान किया है। इलेक्ट्रोनिक चैनल्स की बाढ़ आ गई है। लेकिन, इन चैनल्स का दृष्टिकोण राष्ट्रहित न होकर व्यावसायिक हित तक ही सीमित है। किस खबर को बेचा जा सकता है, यह ही ध्यान दिया जा रहा है। उन्होंने बताया कि पूंजीपतियों ने समाचार पत्र-पत्रिकाओं को उत्पाद बनाकर बेचने पर जोर दिया है, इसीलिए उन्होंने अपनी प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाएं बंद कर दी हैं। श्री भुवनेश ने कहा कि समाज हित में सरकार को साहित्यिक पत्रकारिता का संरक्षण करना चाहिए। साहित्यिक पत्रिकाओं को मुख्यधारा के समाचार पत्रों की तरह सुविधाएं देनी चाहिए।
परंपराओं और लोक कलाओं पर आक्रमण का समय : साहित्यकार गिरीश पंकज
वरिष्ठ साहित्यकार गिरीश पंकज ने कहा कि यह हमारी परंपराओं, संस्कृति और लोक कलाओं पर आक्रमण का समय है। पेरिस में चार्ली एब्दो पर हमला वैश्विक आतंकवाद का सबसे घृणित चेहरा है। यह बताता है कि किस तरह अभिव्यक्ति पर खतरा है। यह प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है। हम जिस प्रकार की पत्रकारिता करें, उसके केन्द्र में मनुष्य होना चाहिए। समाज में सकारात्मक विचारों को बढ़ाने के लिए हमें कलम चलानी चाहिए। उन्होंने पश्चिम के नाम पर चल रही अंधानुकरण पर भी सवाल खड़े किए। श्री पंकज ने कहा कि अब बस्तर में भी बाजार घुस आया है। जिसके कारण हमारी मौलिकता खत्म हो रही है। पारंपरिक गीत-संगीत गायब हो गया है। पहनावा भी पश्चिमी हो गया है। कार्यक्रम में स्वागत भाषण पत्रिका के संपादक डॉ. श्रीकांत सिंह ने भी दिया। निर्णायक मण्डल की ओर से प्रतिवेदन सृजनगाथा डॉट कॉम के सम्पादक जयप्रकाश मानस ने पढ़ा। उन्होंने कहा कि बाजार और वैश्वीकरण के इस दौर में साहित्यिक पत्रकारिता को बचाने का प्रयास है, पं. बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिल भारतीय साहित्यिक सम्मान। पत्रकारिता की मुख्यधारा की पत्रिका होकर मीडिया विमर्श के इन प्रयासों से साहित्यिक पत्रकारिता को बढ़ावा मिल रहा है। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सुभद्रा राठौर ने किया। आभार प्रदर्शन डॉ. सौरभ मालवीय ने किया। पत्रिका के कार्यकारी संपादक संजय द्विवेदी ने अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किए। इस मौके पर भोपाल के प्रबुद्ध लोग मौजूद थे। देशभर से भी बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी आए थे।

Thursday, December 18, 2014

विनय उपाध्याय को पं.बृजलाल द्विवेदी स्मृति अखिलभारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान

मीडिया विमर्श के आयोजन में 7 फरवरी को होंगे अलंकृत 
भोपाल। हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता को सम्मानित किए जाने के लिए दिया जाने वाला पं. बृजलाल द्विवेदी अखिलभारतीय साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान इस वर्ष ‘कला समय’ (भोपाल) के संपादक श्री विनय उपाध्याय  को दिया जाएगा।श्री विनय उपाध्याय  साहित्यिक पत्रकारिता के एक महत्वपूर्ण हस्ताक्षर होने के साथ-साथ देश के जाने-माने संस्कृतिकर्मी एवं लेखक हैं। जनवरी,1998 से वे कला-संस्कृति पर केंद्रित महत्वपूर्ण पत्रिका ‘कला समय’ का संपादन कर रहे हैं।
       पुरस्कार के निर्णायक मंडल में सर्वश्री विश्वनाथ सचदेव,  रमेश नैयर, डा. सच्चिदानंद जोशी, डा.सुभद्रा राठौर और जयप्रकाश मानस शामिल हैं। इसके पूर्व यह सम्मान वीणा(इंदौर) के संपादक स्व. श्यामसुंदर व्यास, दस्तावेज(गोरखपुर) के संपादक विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, कथादेश (दिल्ली) के संपादक हरिनारायण, अक्सर (जयपुर) के संपादक डा. हेतु भारद्वाज, सद्भावना दर्पण (रायपुर) के संपादक गिरीश पंकज और व्यंग्य यात्रा (दिल्ली) के संपादक डा. प्रेम जनमेजय को दिया जा चुका है। त्रैमासिक पत्रिका ‘मीडिया विमर्श’ द्वारा प्रारंभ किए गए इस अखिलभारतीय सम्मान के तहत साहित्यिक पत्रकारिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान करने वाले संपादक को ग्यारह हजार रूपए, शाल, श्रीफल, प्रतीकचिन्ह और सम्मान पत्र से अलंकृत किया जाता है। सम्मान कार्यक्रम 7, फरवरी, 2015 को गांधी भवन, भोपाल में सायं 5 बजे आयोजित किया गया है। मीडिया विमर्श पत्रिका के कार्यकारी संपादक संजय द्विवेदी ने बताया कि आयोजन में अनेक साहित्कार, बुद्धिजीवी और पत्रकार हिस्सा लेगें। इस अवसर पर ‘मीडिया और मूल्यबोध’ विषय पर व्याख्यान भी आयोजित किया गया है।
कौन हैं विनय उपाध्यायः ­ 
साहित्य,संस्कृति और कला पत्रकारिता में विगत 25 वर्षों से समान सक्रिय। दैनिक भास्कर और नई दुनिया समाचार समूह में लम्बी सम्बद्धता के बाद इन दिनों दो सांस्कृतिक पत्रिकाओं "कला समय" और "रंग संवाद" का सम्पादन और अपनी रचनात्मक प्रतिबद्धता के लिए अनेक प्रादेशिक और राष्ट्रीय सम्मानो से विभूषित। जनवरी 1998 में कला और विचार की द्वैमासिक हिंदी पत्रिका  "कला समय" का सम्पादन आरम्भ। साहित्य और कला जगत से जुडी अनेक विभूतियों और घटना-प्रसंगों पर दस्तावेज़ी  अंकों का प्रकाशन। उनके द्वारा संपादित कलासमय पत्रिका माधवराव सप्रे समाचार पत्र और शोध संस्थान द्वारा रामेश्वर गुरु पुरूस्कार से सम्मानित। भारत सहित विदेशों में भी शोध-अध्ययन के लिए कला समय सन्दर्भ पत्रिका के बतौर मान्य। हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर और कंठ संगीत में विशारद। देश भर की  पत्र -पत्रिकाओं में सांस्कृतिक विषयों पर नियमित स्तम्भ और समसामयिक कला मुद्दों पर आलेख और टिप्पणियों का प्रकाशन। दूदर्शन के लिए अनेक वृत्तचित्रों का आलेख और पार्श्व स्वर तथा संगीत-नृत्य के राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय समारोहों के संचालन का सीधा प्रसारण। कई निजी प्रतिष्ठानो द्वारा निर्मित दृश्य-श्रव्य प्रस्तुतियों का संचालन। बतौर कला समीक्षक देश के विभिन्न राज्यों की सांस्कृतिक यात्राएं और अखबारों के लिए विशेष रिपोर्टिंग। कविता लेखन और संगीत  में भी विशेष  रूचि। प्रसार भारती द्वारा गणतंत्र दिवस के प्रतिष्ठित सर्व भाषा कविता सम्मलेन हेतु हिंदी के युवा कवि बतौर बनारस में शिरकत। मधुकली वृन्द द्वारा जारी संगीत अलबमों में गायक स्वर। एक  दर्जन से भी ज्यादा साहित्यिक -सांस्कृतिक संस्थाओं के मानद सदस्य। इन दिनों आईसेक्ट युनिव्हर्सिटी से सम्बद्ध वनमाली सृजन पीठ के राज्य समन्वयक। एक दशक पहले मॉरीशस का साहित्यिक प्रवास।

Thursday, December 11, 2014

मीडिया विमर्श का नया अंक एकात्म मानववाद पर केन्द्रित

एकात्म मानववाद के 50 वर्ष पूरे होने पर मीडिया विमर्श का वार्षिकांक  'भारतीयता का संचारकहो रहा है चर्चित
भोपाल 11 दिसंबर जनसंचार के सरोकारों पर केन्द्रित त्रैमासिक पत्रिका 'मीडिया विमर्शका नवीनतम अंक 'भारतीयता का संचारक' बाजार में आते ही राजनीति और मीडिया के क्षेत्र में चर्चित हो गया है। राष्ट्रवादी विचारधारा के स्तम्भ पंडित दीनदयाल उपाध्याय के चिंतन और पत्रकारीय कौशल पर उम्दा सामग्री इस अंक में है। उनके विचार दर्शन 'एकात्म मानववादको 50 वर्ष पूरे हो रहे हैं। इसलिए पत्रिका का यह अंक खास और चर्चित हो रहा है। पत्रिका अपने आठ वर्ष पूर्ण कर नवें साल में प्रवेश कर रही है और यह उसका वार्षिकांक है।
            मीडिया विमर्श के कार्यकारी संपादक संजय द्विवेदी ने बताया कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीय राजनीति को एक दिशा दी थी। यही नहीं वे कुशल संचारक भी थे। सही मायने में पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारतीयता के संचारक थे। उनके जीवन के इस पहलू पर बहुत कुछ लिखा-पढ़ा नहीं गया है। जनसंचार के क्षेत्र से जुड़े लोग भारतीयता के संचारक के नाते दीनदयालजी के संबंध में अध्ययनलेखनविश्लेषण और शोध करेंइस उद्देश्य को ध्यान में रखकर मीडिया विमर्श का अक्टूबर-दिसम्बर अंक सबके सामने है। श्री द्विवेदी ने बताया कि दुनिया में अलग-अलग समय में अनेक विचारकों ने देशकाल और परिस्थितियों को ध्यान में रखकर कई विचारधाराओं का प्रतिपादन किया। लेकिनये सब पूर्ण नहीं है। दीनदयालजी ने मनुष्य की संपूर्णता का चिंतन करते हुए एकात्म मानववाद का प्रतिपादन किया। एकात्म मानववाद को पचास साल पूरे हो रहे हैं। यह भी एक कारण है कि हमने दीनदयाल जी के पत्रकारिता में योगदान के साथ-साथ एकात्म मानववाद से संबंधित सम्पूर्ण सामग्री को मीडिया और राजनीति से जुड़े लोगों के सामने लाने का निर्णय लिया।
            मीडिया विमर्श का यह वार्षिकांक चार खण्डों में विभक्त है। पहले खण्ड में संचार और मीडिया के क्षेत्र में उनके योगदान पर समृद्ध सामग्री है। इस खण्ड में डॉ. वेदप्रताप वैदिकदेवेन्द्र स्वरूपडॉ. नंदकिशोर त्रिखाडॉ. महेशचंन्द्र शर्मा और गिरीश उपाध्याय सहित अन्य विद्वानों के लेख शामिल हैं। दूसरा खण्ड दस्तावेज है। इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधव सदाशिव गोलवलकरनानाजी देशमुखडॉ. सम्पूर्णानंद के दीनदयालजी के संबंध में लिखे लेखों-भाषणों का संकलन किया गया है। तीसरे खण्ड में एकात्म मानववाद के विषय में दीनदयाल जी के व्याख्यानों का संकलन है। चौथे खण्ड 'विचार दर्शन में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंहमाखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियालाकुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय रायपुर के कुलपति डॉ. सच्चिदानंद जोशीजितेन्द्र बजाजबजरंगलाल गुप्ताजगदीश उपासनेरमेश नैयरइंदुमति काटदरे सहित अन्य विद्वानों के लेख प्रकाशित हैं।
 प्रस्तुतिः लोकेंद्र सिंह

Saturday, December 6, 2014

भारतीयता का संचारक


एकात्म मानवदर्शन के पचास साल पूरे होने पर ‘मीडिया विमर्श’ का वार्षिकांक... भारतीयता के संचारक पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को समर्पित. पूरा अंक पढ़ने के लिए चित्र पर क्लिक कीजिये...